अशोक गहलोत का सियासी गलियारों में दौरे का संदेश "टाइगर अभी जिंदा है" सोशल मीडिया पर छा गई तस्वीरें

राजस्थान की सियासत में एक बार फिर हलचल मची है। जयपुर से भरतपुर तक 21 मार्च 2025 को अशोक गहलोत के भव्य स्वागत ने उनके समर्थकों में जोश भर दिया है, तो वहीं सचिन पायलट के उभरते कद को भी एक नई चुनौती मिलती दिख रही है। "टाइगर अभी जिंदा है" का नारा गहलोत खेमे की ओर से गूंज रहा है,

अशोक गहलोत का सियासी गलियारों में दौरे का संदेश "टाइगर अभी जिंदा है" सोशल मीडिया पर छा गई तस्वीरें

रिपोर्ट जसवंत सिंह - राजस्थान की सियासत में एक बार फिर हलचल मची है। जयपुर से भरतपुर तक 21 मार्च 2025 को अशोक गहलोत के भव्य स्वागत ने उनके समर्थकों में जोश भर दिया है, तो वहीं सचिन पायलट के उभरते कद को भी एक नई चुनौती मिलती दिख रही है। "टाइगर अभी जिंदा है" का नारा गहलोत खेमे की ओर से गूंज रहा है, लेकिन क्या यह उनकी आखिरी दहाड़ है या सियासी अनुभव की जीत? दूसरी ओर, पायलट का युवा जोश और सोशल मीडिया पर बढ़ता प्रभाव भी कम चर्चा में नहीं है। आइए, इस घटनाक्रम को निष्पक्ष नजरिए से देखें।

गहलोत की जोरदार वापसी

अशोक गहलोत, जिन्हें "जादूगर" के नाम से जाना जाता है, ने जयपुर से भरतपुर तक अपने स्वागत से साबित किया कि उनका जनाधार अभी भी कायम है। विधानसभा में उनकी हालिया एंट्री और सड़कों पर कार्यकर्ताओं की भीड़ ने दिखाया कि अनुभव और जमीनी पकड़ अभी भी उनकी ताकत है। गहलोत के समर्थक @WithGehlotJi X पर तस्वीरें शेयर करते हुए लिख रहे हैं कि ,"जननायक का स्वागत! दौसा में कार्यकर्ताओं का हुजूम!" यह नजारा 2023 के विधानसभा चुनाव के बाद उनके हाशिए पर जाने की बातों को चुनौती देता है। गहलोत ने चुपचाप अपनी चाल चली और एक बार फिर सियासी गलियारों में चर्चा का केंद्र बन गए।

सचिन पायलट का उभरता प्रभाव

दूसरी ओर, सचिन पायलट पिछले कुछ महीनों से लगातार सुर्खियों में हैं। टोंक में कार्यकर्ता सम्मेलन, छत्तीसगढ़ में प्रभारी महासचिव की भूमिका, और सोशल मीडिया पर 9 मिलियन फॉलोअर्स – ये सब उनके बढ़ते प्रभाव के संकेत हैं। 2023 के चुनाव के बाद जब कांग्रेस हारी, तो पायलट समर्थकों ने दावा किया था कि अब पार्टी में उनका दौर शुरू होगा। उनकी युवा छवि और आक्रामक अंदाज ने उन्हें नई पीढ़ी के बीच लोकप्रिय बनाया है। पायलट खेमे का मानना है कि भविष्य उनके हाथ में है, और गहलोत का यह जोश शायद एक अस्थायी उछाल मात्र है।

दोनों पक्षों का सच

गहलोत और पायलट की यह सियासी जंग कोई नई बात नहीं है। 2022 में पायलट का जयपुर में अनशन और गहलोत का तंज ("ऐसे लोग मुझे सिखाएंगे?" इस तनाव को उजागर करता है। कांग्रेस हाईकमान ने दोनों को "संपत्ति" कहकर सुलह कराने की कोशिश की थी लेकिन मैदान में दोनों की राहें अलग-अलग दिखती हैं। गहलोत का तर्क है कि उनका अनुभव और जनता से जुड़ाव अब भी बेजोड़ है, जबकि पायलट का दावा है कि बदलते वक्त के साथ युवा नेतृत्व ही आगे ले जाएगा। जयपुर-भरतपुर का जनसैलाब गहलोत की ताकत दिखाता है, लेकिन पायलट के सोशल मीडिया फॉलोअर्स और संगठन में सक्रियता को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

क्या कहते हैं हालात

गहलोत का यह दौरा उनके लिए एक संदेश है कि उन्हें अभी "पास्ट" मानना जल्दबाजी होगी। वहीं, पायलट के लिए यह एक मौका है कि वे इस चुनौती का जवाब अपनी रणनीति से दें। गोविंद सिंह डोटासरा और टीकाराम जूली जैसे अन्य नेता भी मैदान में हैं, जिससे कांग्रेस के भीतर यह सियासी खेल और जटिल हो गया है। गहलोत की सड़कों पर दिखी भीड़ और पायलट का डिजिटल प्रभाव – दोनों ही कांग्रेस के लिए जरूरी हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या ये दोनों ताकतें एक साथ चल पाएंगी, या फिर आपसी टकराव में पार्टी को नुकसान होगा?

आगे क्या?

राजस्थान की सियासत का यह रण अभी खत्म नहीं हुआ है। गहलोत का अनुभव और पायलट का जोश – दोनों के अपने-अपने दावे हैं। जहां गहलोत ने साबित किया कि उनकी "टोपी" से अभी भी जादू निकलता है, वहीं पायलट के पास समय और ऊर्जा है कि वे इस खेल को अपने पक्ष में मोड़ें। कांग्रेस कार्यकर्ताओं का उत्साह दोनों के लिए उम्मीद की किरण है, लेकिन असली जीत इस बात पर निर्भर करेगी कि कौन पार्टी को एकजुट रखते हुए आगे ले जाता है। फिलहाल, पॉपकॉर्न लेकर इंतजार करें – क्योंकि यह कहानी अभी और रोचक होने वाली है!