"बाड़मेर का सबसे बड़ा जिला अस्पताल 'बीमार': मरीजों के लिए इलाज बना मुश्किल, निजी लैब की शरण में मजबूरी"

बाड़मेर जिले का मेडिकल कॉलेज से संबद्ध सबसे बड़ा जिला अस्पताल इन दिनों खुद "बीमार" हालत में नजर आ रहा है।

"बाड़मेर का सबसे बड़ा जिला अस्पताल 'बीमार': मरीजों के लिए इलाज बना मुश्किल, निजी लैब की शरण में मजबूरी"
बाड़मेर जिला अस्पताल

बाड़मेर रिपोर्ट जसवंत सिंह शिवकर :जिले का मेडिकल कॉलेज से संबद्ध सबसे बड़ा जिला अस्पताल इन दिनों खुद "बीमार" हालत में नजर आ रहा है। अस्पताल में मूलभूत जांच सुविधाओं का अभाव मरीजों के लिए परेशानी का सबब बन गया है। हालात यह हैं कि कई महीनों से सिटी स्कैन मशीन बंद पड़ी है, वहीं पूरे अस्पताल में मौजूद तीन सोनोग्राफी मशीनों में से दो लंबे समय से खराब हैं। नतीजतन, मरीजों को मजबूरन निजी लैब की शरण लेनी पड़ रही है, जहां उन्हें दोगुनी कीमत चुकानी पड़ रही है। ऐसे में जिला अस्पताल इलाज के नाम पर शून्य साबित हो रहा है, और मरीजों की जान जोखिम में पड़ रही है। 

सिटी स्कैन और सोनोग्राफी का संकट

जिला अस्पताल में सिटी स्कैन मशीन के महीनों से बंद होने के कारण गंभीर मरीजों को तुरंत जांच की सुविधा नहीं मिल पा रही। इसी तरह, सोनोग्राफी के लिए सिर्फ एक मशीन काम कर रही है, जिसके चलते मरीजों को लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ती है या फिर निजी लैब की ओर रुख करना पड़ता है। गर्भवती महिलाओं और हादसों में घायल मरीजों के लिए यह स्थिति और भी गंभीर हो जाती है। एक मरीज ने बताया, "यहां सोनोग्राफी के लिए एक महीने की वेटिंग है, मजबूरी में हमें बाहर जाना पड़ता है, जहां 500 रुपये की जांच के लिए 1000-1200 रुपये तक वसूले जा रहे हैं।"

निजी लैब पर बढ़ती निर्भरता

अस्पताल की इस लचर व्यवस्था के कारण मरीजों को निजी लैब पर निर्भर होना पड़ रहा है। निजी जांच केंद्रों में सिटी स्कैन और सोनोग्राफी की कीमत सरकारी दरों से कहीं ज्यादा है, जिससे गरीब और मध्यम वर्ग के मरीजों पर आर्थिक बोझ पड़ रहा है। एक स्थानीय निवासी ने कहा, "जिला अस्पताल में सुविधाएं नहीं हैं, और बाहर जांच कराने में समय और पैसा दोनों बर्बाद होते हैं। अगर कोई बड़ा हादसा हो जाए तो निजी लैब तक पहुंचने में देरी मरीज की जान भी ले सकती है।"

आपात स्थिति में जोखिम

अस्पताल की मौजूदा हालत को देखते हुए विशेषज्ञों का मानना है कि किसी बड़े हादसे की स्थिति में मरीजों को तुरंत इलाज उपलब्ध कराना मुश्किल हो सकता है। सिटी स्कैन और सोनोग्राफी जैसी जरूरी जांचें अस्पताल में उपलब्ध न होने से मरीजों को बाहर भेजा जाता है, और इस प्रक्रिया में कीमती समय नष्ट होता है। एक चिकित्सक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "मशीनें खराब होने की शिकायत कई बार प्रशासन तक पहुंचाई गई, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।"

जिम्मेदार कौन?

जिला अस्पताल की इस दुर्दशा के लिए प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की उदासीनता को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। मशीनों के रखरखाव और मरम्मत के लिए समय पर कार्रवाई न होने से स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। विधायक डॉ. प्रियंका चौधरी ने हाल ही में विधानसभा में इस मुद्दे को उठाते हुए सरकार से जांच की मांग की थी। उन्होंने कहा, "बाड़मेर अस्पताल की ओपीडी 3000 से ज्यादा है, लेकिन सुविधाएं नाकाफी हैं। मरीजों को डेढ़ किलोमीटर दूर सिटी स्कैन के लिए जाना पड़ता है।"