बाड़मेर में मासूमों का चुराया बचपन: बालश्रम का काला खेल, प्रशासन कहां?

शहर में फैक्ट्रियों, बड़े ठेकेदारों, रेस्टोरेंट्स और दुकानों पर 14 साल से कम उम्र के बच्चों से बालश्रम करवाने का गंभीर मामला प्रकाश में आया है।

बाड़मेर में मासूमों का चुराया बचपन: बालश्रम का काला खेल, प्रशासन कहां?

राजेंद्र सिंह/बाड़मेर में बालश्रम की चिंताजनक स्थिति: मासूम बच्चों का शोषण जारी, प्रशासन की उदासीनता पर सवाल

 बाड़मेर शहर में फैक्ट्रियों, बड़े ठेकेदारों, रेस्टोरेंट्स और दुकानों पर 14 साल से कम उम्र के बच्चों से बालश्रम करवाने का गंभीर मामला प्रकाश में आया है। लंबे समय से चल रही इस अमानवीय प्रथा के खिलाफ कोई प्रभावी कार्रवाई न होने से मासूम बच्चों का शोषण बदस्तूर जारी है। जिम्मेदार विभाग और पुलिस के अभियान निष्क्रिय दिखाई दे रहे हैं, जिससे प्रशासन की संवेदनशीलता और कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं।

शहर के औद्योगिक क्षेत्रों में फैक्ट्रियों और ठेकेदारों के अधीन काम करने वाले ये बच्चे खतरनाक परिस्थितियों में दिन-रात मेहनत करने को मजबूर हैं। इसके साथ ही, बाजारों में रेस्टोरेंट्स और दुकानों पर भी छोटे बच्चे सुबह से देर रात तक काम करते देखे जा रहे हैं। यह सब बालश्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986 का स्पष्ट उल्लंघन है, जिसमें 14 साल से कम उम्र के बच्चों से काम करवाना अपराध माना गया है। इस अपराध के लिए 6 माह से 2 साल तक की सजा और 20,000 से 50,000 रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है, लेकिन बाड़मेर में यह कानून सिर्फ कागजों तक सीमित नजर आता है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि इस समस्या की शिकायतें कई बार प्रशासन और पुलिस तक पहुंचाई गईं, लेकिन कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया। एक नागरिक, गोपाल सिंह ने बताया, "हमारे सामने बच्चे अपना बचपन खो रहे हैं। शिक्षा का अधिकार छीना जा रहा है, लेकिन न श्रम विभाग कुछ कर रहा है, न पुलिस। यह बेहद दुखद है।

श्रम विभाग के सूत्रों का कहना है कि उनके पास कर्मचारियों और संसाधनों की कमी है, लेकिन इस बहाने से बच्चों के साथ हो रही ज्यादती को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। पुलिस भी इस मामले में गंभीरता नहीं दिखा रही, जिसके चलते बालश्रम का यह धंधा फल-फूल रहा है। 

बाड़मेर में इन मासूम बच्चों के साथ हो रहे शोषण को रोकने के लिए अब जनता और समाजसेवियों की निगाहें प्रशासन पर टिकी हैं। लोगों की मांग है कि तुरंत एक विशेष अभियान शुरू किया जाए, जिसमें फैक्ट्रियों, ठेकेदारों, रेस्टोरेंट्स और दुकानों की जांच हो, बच्चों को मुक्त कर उनकी शिक्षा और पुनर्वास की व्यवस्था की जाए। यह वक्त की जरूरत है कि प्रशासन जागे और इन बच्चों को उनका हक दिलाए, वरना बाड़मेर का भविष्य अधर में लटकता रहेगा।