क्या पश्चिम बंगाल राष्ट्रपति शासन की तरफ़ बढ़ रहा है?
कोलकाता में एक डॉक्टर से बलात्कार के बाद विरोध प्रदर्शन, राज्यपाल की बार बार दिल्ली में मुलाकातें, पश्चिम बंगाल के बीजेपी अध्यक्ष का राज्यपाल से मुलाकात करना और राष्ट्रपति जी का बयान के क्या मायने हैं।
कोलकाता में हाल ही में घटी एक बलात्कार की घटना के बाद पिछले दस दिनों में जो परिस्थितियां बन रही हैं, वो राष्ट्रपति शासन की ओर इशारा कर रही हैं।
20 अगस्त को पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सी. वी. आनंद बोस दिल्ली में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और गृहमंत्री से मुलाकात करते हैं। इसके तुरंत बाद, 27 अगस्त को प्रदेश सचिवालय की बिल्डिंग, जिसे नबन्ना भवन कहा जाता है, तक पहुँचने के लिए एक विरोध मार्च निकाला गया। इस मार्च पर पुलिस की कार्रवाई के विरोध में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने बंगाल बंद का आयोजन किया।
इन घटनाओं के बाद राष्ट्रपति का बयान आया जिसमें उन्होंने कहा, "बस अब बहुत हो गया, मैं निराश और भयभीत हूं..." इस बयान के बाद राजनीतिक पारा और चढ़ गया। ममता बनर्जी ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "अगर बंगाल में आग लगाई गई, तो असम, पूर्वोत्तर, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा और दिल्ली भी प्रभावित होंगे। मोदी बाबू अपनी पार्टी का इस्तेमाल यहां आग लगाने के लिए कर रहे हैं। हम आपकी कुर्सी गिरा देंगे।"
इसके बाद, भाजपा बंगाल के अध्यक्ष सुकांता मजूमदार ने बंगाल के राज्यपाल से मुलाकात की और उन्हें "नागरिक अशांति" के बारे में अवगत कराया। इस अहम मुलाकात के तुरंत बाद राज्यपाल दिल्ली के लिए रवाना हो गए।
अब इन घटनाओं को जोड़कर देखें तो एक बड़ा संकेत मिलता है कि बंगाल में राष्ट्रपति शासन की संभावनाएं बढ़ रही हैं।
अनुच्छेद 356 क्या कहता है?
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 356 यह कहता है कि "यदि राष्ट्रपति, राज्य के राज्यपाल से रिपोर्ट प्राप्त करने पर या अन्यथा संतुष्ट हो जाते हैं कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमें राज्य का शासन संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता, तो वे राज्य में आपातकाल की उद्घोषणा कर सकते हैं।"
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इस अनुच्छेद के तहत राष्ट्रपति राज्य की कार्यकारी और विधायी शक्तियों को संघ सरकार को सौंप सकते हैं।
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राष्ट्रपति यह कदम केंद्रीय मंत्रिपरिषद की सलाह पर उठाते हैं।
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इसके बाद राज्य का प्रशासन सीधे केंद्र सरकार के हाथ में आ जाता है।
अब सवाल यह है कि क्या पश्चिम बंगाल में यह स्थिति बन चुकी है? हाल की घटनाएं और राजनीतिक तनाव इस ओर संकेत कर रहे हैं कि राज्यपाल और केंद्र सरकार स्थिति पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं।
यदि बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू होता है, तो यह राज्य की राजनीतिक दिशा के लिए एक बड़ा मोड़ हो सकता है। हालांकि, इससे पहले कई संवैधानिक और राजनीतिक प्रक्रियाएं पूरी करनी होंगी, जो यह तय करेंगी कि पश्चिम बंगाल वास्तव में राष्ट्रपति शासन की ओर बढ़ रहा है या नहीं।