"जयपुर: गुलाबी नगरी जो बनी राजस्थान की शाही राजधानी"

जयपुर को राजस्थान की राजधानी बनाए जाने की कहानी इतिहास, रणनीति और शाही दूरदर्शिता का एक अनूठा संगम है।

"जयपुर: गुलाबी नगरी जो बनी राजस्थान की शाही राजधानी"

रिपोर्ट जसवंत सिंह शिवकर - जयपुर को राजस्थान की राजधानी बनाए जाने की कहानी इतिहास, रणनीति और शाही दूरदर्शिता का एक अनूठा संगम है। 18 नवंबर 1727 को स्थापित यह शहर महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय की दूरदर्शी सोच का प्रतीक है, जिन्होंने इसे न केवल अपनी राजधानी बनाया, बल्कि इसे एक सुनियोजित और समृद्ध नगरी के रूप में स्थापित किया। लेकिन सवाल यह है कि जयपुर ही क्यों? और क्या महाराजा सवाई जय सिंह को आजीवन राजप्रमुख बनाया गया था? आइए, इस रोचक कहानी को विस्तार से जानें। 

जयपुर क्यों बना राजधानी?

महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने अपनी पुरानी राजधानी आमेर को छोड़कर जयपुर को नई राजधानी बनाने का फैसला लिया। आमेर का किला भले ही शाही वैभव का प्रतीक था, लेकिन बढ़ती आबादी, पानी की कमी और रणनीतिक सीमाओं ने इसे अपर्याप्त बना दिया था। जयपुर का चयन इसकी भौगोलिक स्थिति, सुरक्षा और विस्तार की संभावनाओं के कारण हुआ। यहाँ चारों ओर पहाड़ियों की प्राकृतिक सुरक्षा थी, जो इसे दुश्मनों से बचाने में मददगार थी। साथ ही, यहाँ पानी के स्रोतों की बेहतर व्यवस्था और व्यापारिक मार्गों से जुड़ाव ने इसे आदर्श बनाया।

महाराजा ने बंगाली वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य की मदद से जयपुर को वास्तुशास्त्र और ज्योतिष के सिद्धांतों पर बसाया। शहर को नौ खंडों में बाँटा गया, जो नौ ग्रहों का प्रतीक था। इस सुनियोजित डिज़ाइन और गुलाबी रंग की इमारतों ने इसे "गुलाबी नगरी" का खिताब दिलाया। 1876 में महारानी विक्टोरिया के स्वागत में पूरे शहर को गुलाबी रंग में रंगवाया गया, जो आज भी इसकी पहचान है।

महाराजा और राजप्रमुख का सवाल

यह धारणा कि महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय को "आजीवन राजप्रमुख" बनाया गया था, ऐतिहासिक रूप से सही नहीं है। सवाई जय सिंह का शासन 1699 से 1743 तक रहा, और उन्होंने जयपुर को 1727 में स्थापित किया। लेकिन "राजप्रमुख" का पद तो भारत के स्वतंत्र होने के बाद 1947 में अस्तित्व में आया, जब राजस्थान संघ बना। इस पद पर पहली बार महाराजा मान सिंह द्वितीय को नियुक्त किया गया था, न कि सवाई जय सिंह को। सवाई जय सिंह अपने समय में कुशल प्रशासक, खगोलशास्त्री और योद्धा थे, जिन्हें "सवाई" की उपाधि मुगल सम्राट औरंगजेब से मिली थी, जिसका अर्थ है "डेढ़ गुना बेहतर"।

जयपुर का ऐतिहासिक महत्व

जयपुर न केवल राजधानी बना, बल्कि यह राजस्थान की संस्कृति, कला और शिल्प का केंद्र भी बन गया। हवा महल, सिटी पैलेस, जंतर-मंतर (जो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है) जैसे स्थानों ने इसे विश्व पटल पर प्रसिद्धि दिलाई। महाराजा की दूरदर्शिता ने जयपुर को एक ऐसा शहर बनाया, जो आज भी पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र है।

तो, जयपुर का चयन सिर्फ एक राजधानी के लिए नहीं, बल्कि एक शाही सपने को साकार करने के लिए किया गया था, जो आज भी राजस्थान की पहचान को गर्व से प्रदर्शित करता है।