मुंबई हमलों का मास्टरमाइंड तहव्वुर राणा भारत की गिरफ्त में: क्या खुलेंगे आतंकी साजिशों के नए राज?
मुंबई के दिल में 26 नवंबर 2008 को दहशत का जो तांडव मचा था, उसकी साजिश रचने वालों में से एक तहव्वुर राणा अब भारत की हिरासत में है। सालों की कानूनी जंग और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के बाद आखिरकार अमेरिका ने इस आतंकी को भारत के हवाले कर दिया

तहव्वुर हुसैन राणा, 26/11 मुंबई आतंकी हमलों का एक प्रमुख साजिशकर्ता, आखिरकार भारत की धरती पर कानून के शिकंजे में है। 10 अप्रैल 2025 को अमेरिका से प्रत्यर्पित होने के बाद, यह पाकिस्तानी मूल का कनाडाई नागरिक अब राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की हिरासत में है। उसकी कहानी जासूसी थ्रिलर से कम नहीं—पाकिस्तानी सेना से लेकर अमेरिका में इमिग्रेशन फर्म तक, और फिर आतंकी साजिशों के केंद्र में। आइए, इस सनसनीखेज मामले की गहराई में उतरें और जानें कि राणा का प्रत्यर्पण भारत के लिए क्यों है एक ऐतिहासिक जीत और क्या रहस्य सामने आ सकते हैं।
राणा का अंधेरा सफर: सेना से आतंक तक
64 वर्षीय तहव्वुर राणा का जन्म पाकिस्तान में हुआ। उसने पाकिस्तान के आर्मी मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई की और करीब एक दशक तक वहां सेना में डॉक्टर रहा। 1990 के दशक में वह कनाडा चला गया, जहां उसने नागरिकता हासिल की और बाद में अमेरिका में बस गया। शिकागो में उसने एक इमिग्रेशन कंसल्टेंसी फर्म शुरू की, जो बाहर से सामान्य कारोबार दिखती थी, लेकिन इसका इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों के लिए एक परदे के रूप में हुआ। राणा का सबसे खतरनाक कनेक्शन था डेविड कोलमैन हेडली (उर्फ दाऊद गिलानी) से, जो उसका बचपन का दोस्त था और मुंबई हमलों का एक अन्य प्रमुख साजिशकर्ता।
26/11: खूनी साजिश में राणा की भूमिका
26 नवंबर 2008 को मुंबई में लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकियों ने ताज पैलेस होटल, ओबेरॉय ट्राइडेंट, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस और नरीमन हाउस जैसे स्थानों पर हमला किया। 166 लोग मारे गए, जिनमें छह अमेरिकी नागरिक और 18 सुरक्षाकर्मी शामिल थे, और 300 से अधिक घायल हुए। यह भारत के इतिहास का सबसे घातक आतंकी हमला था।
राणा ने इस हमले की साजिश को अंजाम देने में अहम भूमिका निभाई। उसने हेडली को मुंबई में रेकी करने के लिए भेजा, जिसके लिए उसकी फर्म ने फर्जी वीजा और दस्तावेज मुहैया कराए। हेडली ने ताज होटल, नरीमन हाउस और अन्य लक्ष्यों की तस्वीरें और वीडियो बनाए, जो आतंकियों तक पहुंचाए गए। हैरानी की बात यह है कि राणा खुद 11 से 21 नवंबर 2008 तक मुंबई में था। उसने ताज पैलेस होटल और पवई के रेनेसां होटल में ठहरते हुए लक्ष्यों की रेकी की।
जांच में सामने आया कि राणा लश्कर-ए-तैयबा और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के एक अधिकारी, मेजर इकबाल, के संपर्क में था। उसने हमले की साजिश को अंजाम देने में लॉजिस्टिक और वित्तीय सहायता प्रदान की। हमले के बाद राणा ने कथित तौर पर मरने वालों की संख्या पर खुशी जताई और आतंकियों को पाकिस्तान का सर्वोच्च सैन्य सम्मान देने की बात कही।
शिकागो से हिरासत तक: अमेरिका में पकड़ा गया
2009 में राणा और हेडली को अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई ने शिकागो में गिरफ्तार किया। वे डेनमार्क के एक अखबार, जिलैंड्स-पोस्टेन, पर हमले की साजिश रच रहे थे, जिसने पैगंबर मोहम्मद के विवादास्पद कार्टून छापे थे। 2013 में अमेरिकी अदालत ने राणा को डेनमार्क साजिश और लश्कर को सहायता देने के लिए 14 साल की सजा सुनाई, लेकिन उसे मुंबई हमलों के लिए दोषी नहीं ठहराया गया। इस फैसले ने भारत को उसका प्रत्यर्पण मांगने के लिए प्रेरित किया।
हेडली ने जांच में सहयोग किया और राणा के खिलाफ गवाही दी। उसने बताया कि राणा हमले की पूरी साजिश से वाकिफ था और लश्कर के साथ मिलकर काम कर रहा था। हेडली के बयानों, ईमेल, और फोन रिकॉर्ड ने राणा की आतंकी गतिविधियों को बेनकाब किया।
प्रत्यर्पण: कानूनी जंग और भारत की जीत
भारत ने 2019 में राणा के प्रत्यर्पण की औपचारिक मांग की। एनआईए ने अमेरिकी अदालतों में पुख्ता सबूत पेश किए, जिनमें हेडली के बयान, राणा और हेडली के बीच 230 से अधिक फोन कॉल, और रेकी के वीडियो शामिल थे। राणा ने प्रत्यर्पण से बचने के लिए हर संभव कोशिश की। उसने अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दावा किया कि भारत में उसे यातना दी जाएगी और उसकी सेहत खराब है। लेकिन 7 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने उसकी याचिका खारिज कर दी।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने फरवरी 2025 में राणा के प्रत्यर्पण को मंजूरी दी, जिसे भारत-अमेरिका के बीच आतंकवाद विरोधी सहयोग का प्रतीक माना गया। 10 अप्रैल 2025 को राणा को विशेष विमान से दिल्ली लाया गया। दिल्ली पुलिस की स्वाट टीम और एनआईए ने पालम हवाई अड्डे से लेकर पटियाला हाउस कोर्ट तक फूलप्रूफ सुरक्षा सुनिश्चित की।
दिल्ली में हिरासत: क्या खुलेंगे नए राज?
राणा को उसी दिन पटियाला हाउस कोर्ट में पेश किया गया, जहां विशेष एनआईए जज चंद्रजीत सिंह ने उसे 18 दिन की हिरासत में भेज दिया। एनआईए ने 20 दिन मांगे थे, लेकिन कोर्ट ने 18 दिन की मंजूरी दी। राणा के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी (आपराधिक साजिश), 121 (देश के खिलाफ युद्ध), 302 (हत्या), 468 (जालसाजी), और यूएपीए की धारा 16, 18, और 20 के तहत मामला दर्ज है।
एनआईए अब राणा से गहन पूछताछ कर रही है। पूछताछ के प्रमुख बिंदु हैं:
- हमले की फंडिंग और लॉजिस्टिक्स की जानकारी।
- लश्कर-ए-तैयबा और आईएसआई के साथ उसके संबंध।
- अन्य आतंकी योजनाओं या नेटवर्क की जानकारी।
- हेडली और अन्य आतंकियों के साथ उसकी बातचीत का पूरा ब्योरा।
राणा को तिहाड़ जेल के हाई-सिक्योरिटी वार्ड में रखे जाने की संभावना है। उसकी सुरक्षा के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं, क्योंकि उसका मामला संवेदनशील है। कोर्ट में उसका प्रतिनिधित्व दिल्ली लीगल सर्विसेज के वकील पीयूष सचदेवा करेंगे, जबकि केंद्र सरकार ने विशेष अभियोजक के रूप में नरेंद्र मान को नियुक्त किया है।
राणा के खिलाफ सबूतों का पहाड़
भारत के पास राणा के खिलाफ मजबूत सबूत हैं, जो उसे सजा दिलाने में अहम साबित हो सकते हैं:
- **हेडली की गवाही**: हेडली ने राणा की साजिश में सक्रिय भूमिका की पुष्टि की।
- **डिजिटल सबूत**: राणा और हेडली के बीच सैकड़ों कॉल और ईमेल, जिनमें हमले की योजना पर चर्चा थी।
- **यात्रा रिकॉर्ड**: राणा का हमले से ठीक पहले मुंबई में होना और ताज होटल की रेकी करना।
- **लश्कर कनेक्शन**: मेजर इकबाल और लश्कर के अन्य आतंकियों के साथ उसका संपर्क।
- **हमले के बाद बयान**: राणा का मरने वालों की संख्या पर खुशी जताना।
भारत के लिए एक मील का पत्थर
राणा का प्रत्यर्पण भारत के लिए कई मायनों में ऐतिहासिक है:
- **न्याय की उम्मीद**: 26/11 के पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए यह न्याय की ओर बड़ा कदम है।
- **आतंकवाद पर प्रहार**: यह वैश्विक स्तर पर आतंकवाद के खिलाफ भारत की मजबूत नीति को दर्शाता है।
- **पाकिस्तान पर दबाव**: राणा की पूछताछ से लश्कर और आईएसआई की भूमिका पर नए खुलासे हो सकते हैं, जिससे पाकिस्तान की जवाबदेही तय होगी।
- **कूटनीतिक सफलता**: भारत-अमेरिका सहयोग ने इस मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
क्या होगा अगला ट्विस्ट?
राणा का मुकदमा भारत में तेजी से चलने की उम्मीद है। अगर वह दोषी पाया जाता है, तो उसे कठोर सजा, संभवतः फांसी तक का सामना करना पड़ सकता है, जैसा कि हमले के एकमात्र जिंदा पकड़े गए आतंकी अजमल कसाब के साथ हुआ था। उसकी पूछताछ से आतंकी नेटवर्क के नए तार जुड़ सकते हैं, जो भारत की सुरक्षा के लिए अहम साबित होंगे।
क्या राणा कोई चौंकाने वाला खुलासा करेगा? क्या वह लश्कर और आईएसआई के गहरे रहस्यों को उजागर करेगा? या फिर वह चुप्पी साधकर कानूनी दांवपेच खेलेगा? यह कहानी अभी खत्म नहीं हुई है। राणा की हिरासत और मुकदमे पर भारत ही नहीं, पूरी दुनिया की नजरें टिकी हैं।
तहव्वुर राणा का भारत आना केवल एक प्रत्यर्पण नहीं, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ भारत की अटल लड़ाई का प्रतीक है। यह 26/11 के घावों पर मरहम और पीड़ितों के लिए न्याय की उम्मीद लेकर आया है। जैसे-जैसे एनआईए की पूछताछ आगे बढ़ेगी, दुनिया को शायद आतंकी साजिशों के कुछ और काले अध्याय देखने को मिलें। यह एक ऐसी कहानी है, जिसमें हर पल नया रहस्य उजागर होने का इंतजार कर रहा है।