नागौर की सियासत एक बार फिर में तूफान: मिर्धा बनाम खींवसर की सोशल मीडिया जंग

नागौर की राजनीति में नया मोड़ आया है, जहां BJP नेत्री ज्योति मिर्धा और कैबिनेट मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर के बीच तीखी सियासी जंग सोशल मीडिया पर छिड़ गई है। खींवसर विधायक रेवंतराम डांगा की वायरल चिट्ठी ने इस विवाद को हवा दी, जिसमें मिर्धा ने खींवसर पर अप्रत्यक्ष रूप से चिट्ठी लीक करने का आरोप लगाया। खींवसर और उनके बेटे धनंजय ने पलटवार करते हुए मिर्धा की नीति और निष्ठा पर सवाल उठाए। यह जंग जाट-राजपूत समीकरण, हनुमान बेनीवाल के प्रभाव और BJP की आंतरिक कलह को उजागर कर रही है। इसका असर 2028 के चुनावों और क्षेत्रीय राजनीति पर पड़ सकता है।

नागौर की सियासत एक बार फिर में तूफान: मिर्धा बनाम खींवसर की सोशल मीडिया जंग

राजस्थान के नागौर जिले की राजनीति एक बार फिर सुर्खियों में है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) की वरिष्ठ नेत्री और पूर्व सांसद डॉ. ज्योति मिर्धा और राज्य के कैबिनेट मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर के बीच चल रही सियासी तकरार अब सोशल मीडिया पर छाई हुई है। यह विवाद न केवल BJP के आंतरिक समीकरणों को उजागर कर रहा है, बल्कि नागौर की जाट-राजपूत राजनीति और क्षेत्रीय वर्चस्व की लड़ाई को भी सामने ला रहा है। आइए हम इस सियासी जंग के कारणों, घटनाक्रम, और इसके संभावित परिणामों पर विस्तार से समझते हैं ।

विवाद की जड़: रेवंतराम डांगा की चिट्ठी

इस ताजा विवाद की शुरुआत पिछले महीने तब हुई, जब नागौर के खींवसर से BJP विधायक रेवंतराम डांगा द्वारा मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को लिखी गई एक गोपनीय चिट्ठी सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। इस चिट्ठी में डांगा ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि उनके विधानसभा क्षेत्र में विरोधी दल के नेताओं के काम हो रहे हैं, जबकि उनकी सिफारिशों पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि क्षेत्र में नियुक्त अफसर और कर्मचारी विरोधी नेताओं के इशारे पर काम कर रहे हैं, और उनकी अनुशंसा पर एक भी तबादला नहीं हुआ।

इस चिट्ठी के वायरल होने से BJP की किरकिरी हुई, और ज्योति मिर्धा ने इस मामले में बिना नाम लिए गजेंद्र सिंह खींवसर पर निशाना साधा। मिर्धा ने अप्रत्यक्ष रूप से खींवसर पर चिट्ठी लीक करने का आरोप लगाया, जिससे दोनों नेताओं के बीच तनातनी शुरू हो गई। मिर्धा ने कहा कि उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया, फिर भी खींवसर और उनके बेटे धनंजय सिंह भड़क रहे हैं, जो यह दर्शाता है कि "चोर की दाढ़ी में तिनका" है। दूसरी ओर, खींवसर ने भी मिर्धा से सबूत मांगते हुए कहा कि अगर उन्होंने चिट्ठी वायरल की है, तो मिर्धा इसे साबित करें।

 सोशल मीडिया पर छिड़ी जंग

यह विवाद अब सोशल मीडिया पर खुलकर सामने आ चुका है। गजेंद्र सिंह खींवसर के बेटे धनंजय सिंह ने बिना नाम लिए (नागौर की क्षेत्रीय नेत्री) पर तीखा हमला बोला है। धनंजय ने नीति और निष्ठा पर सवाल उठाते हुए उनके राजनीतिक संस्कारों को कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा कि पार्टी में अनुशासनहीनता की हदें पार की हैं।

वहीं, ज्योति मिर्धा ने भी पलटवार करने में देर नहीं की। उन्होंने कहा कि वह पार्टी के अनुशासन का पालन करती हैं और जहां सबूत देना था, वहां दे चुकी हैं। मिर्धा ने खींवसर और उनके बेटे की प्रतिक्रिया को उनकी घबराहट का सबूत बताया। सोशल मीडिया पर मिर्धा समर्थकों और खींवसर समर्थकों के बीच भी तीखी बहस देखने को मिल रही है, जिसने इस सियासी जंग को और हवा दी है।

पृष्ठभूमि: मिर्धा और खींवसर का राजनीतिक सफर

ज्योति मिर्धा: ज्योति मिर्धा नागौर के दिग्गज जाट नेता नाथूराम मिर्धा की पोती हैं। नाथूराम जाट समाज के बड़े नेता थे और छह बार सांसद व चार बार विधायक रहे। ज्योति मिर्धा ने 2009 में कांग्रेस के टिकट पर नागौर लोकसभा सीट जीती थी, लेकिन 2014 में BJP के सीआर चौधरी और 2019 में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) के हनुमान बेनीवाल से हार गईं। 2023 में उन्होंने कांग्रेस छोड़कर BJP जॉइन की, लेकिन विधानसभा चुनाव में नागौर सीट से कांग्रेस के हरेंद्र मिर्धा से हार गईं। मिर्धा को जाट वोट बैंक का बड़ा चेहरा माना जाता है। 

गजेंद्र सिंह खींवसर: गजेंद्र सिंह खींवसर नागौर के खींवसर से विधायक और वर्तमान में राजस्थान सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। वह राजपूत समाज के प्रभावशाली नेता हैं खींवसर को हनुमान बेनीवाल के साथ करीबी संबंधों के लिए भी जाना जाता है, जो RLP के प्रमुख और नागौर की राजनीति में एक बड़ा नाम हैं। खींवसर का परिवार क्षेत्र में सियासी और सामाजिक रूप से सक्रिय है, और उनके बेटे धनंजय सिंह भी अब इस विवाद में खुलकर सामने आए हैं।

इस विवाद में हनुमान बेनीवाल का नाम भी बार-बार उछल रहा है। बेनीवाल, जो RLP के संस्थापक और नागौर के सांसद हैं, जाट समाज के बड़े नेता हैं। कुछ सोशल मीडिया पोस्ट्स में दावा किया गया है कि खींवसर बेनीवाल के साथ गठबंधन की रणनीति बना रहे हैं और इसके लिए मिर्धा और रेवंतराम डांगा को हाशिए पर करने की कोशिश कर रहे हैं। माना जा रहा है कि खींवसर बेनीवाल की मदद से अपनी सियासी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं, जबकि मिर्धा खींवसर में अपना वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश में हैं।

इसके अलावा, खींवसर और मिर्धा के बीच यह तकरार BJP के लिए नागौर में एकता की कमी को उजागर कर रही है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अगर यह विवाद नहीं सुलझा, तो इसका असर 2028 के विधानसभा चुनावों और आगामी पंचायती राज चुनावों में देखने को मिल सकता है।

 संभावित परिणाम

1. पार्टी अनुशासन पर सवाल: मिर्धा और खींवसर के बीच यह सार्वजनिक विवाद BJP के लिए अनुशासनहीनता का मुद्दा बन सकता है। पार्टी नेतृत्व को इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ सकता है।

2. जातिगत ध्रुवीकरण: जाट और राजपूत समुदायों के बीच यह तनाव क्षेत्र में वोटों के ध्रुवीकरण को बढ़ा सकता है, जिसका फायदा विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस और RLP, को मिल सकता है।

3. हनुमान बेनीवाल का प्रभाव: अगर खींवसर और बेनीवाल के बीच अंदरूनी गठबंधन की अटकलें सच साबित होती हैं, तो यह नागौर की सियासत में नया समीकरण बना सकता है, जिसमें मिर्धा को और नुकसान हो सकता है।

4. मिर्धा की सियासी स्थिति: लगातार हार और इस विवाद ने मिर्धा की सियासी विश्वसनीयता को चुनौती दी है। उनकी अगली रणनीति इस बात पर निर्भर करेगी कि वह पार्टी में अपनी स्थिति कैसे मजबूत करती हैं।

नागौर की सियासत में ज्योति मिर्धा और गजेंद्र सिंह खींवसर की यह जंग न केवल व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं की लड़ाई है, बल्कि क्षेत्रीय वर्चस्व, जातिगत समीकरणों, और BJP की आंतरिक राजनीति का भी प्रतिबिंब है। सोशल मीडिया ने इस विवाद को और हवा दी है, जिससे यह आम जनता और राजनीतिक विश्लेषकों के बीच चर्चा का विषय बन गया है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि BJP इस आंतरिक कलह को कैसे सुलझाती है और इसका नागौर की सियासत पर क्या असर पड़ता है।