पंचायत पुनर्गठन पर आपत्तियों की बाढ:कहीं सरपंची की चाह, तो कहीं जातीय समीकरणों का टकराव।

पंचायत पुनर्गठन पर आपत्तियों की बाढ:कहीं सरपंची की चाह, तो कहीं जातीय समीकरणों का टकराव।

अर्जुन दर्जी की रिपोर्ट/गुड़ामालानी बाड़मेर।जिला कलेक्टर द्वारा पंचायत पुनर्गठन के प्रस्ताव मांगे जाने के बाद जिले में नए पंचायत गठन को लेकर आपत्तियों की बाढ़ सी आ गई है। लगभग हर प्रस्तावित पंचायत से लोग पहुंचकर अपनी आपत्तियां दर्ज करवा रहे हैं।

लेकिन जब ग्राउंड रिपोर्टिंग के तहत वास्तविकता को समझने का प्रयास किया गया, तो तस्वीर कुछ और ही नजर आई। स्थानीय लोगों और जनप्रतिनिधियों से बातचीत के बाद सामने आया कि अधिकांश प्रस्ताव सभी नियमों और मापदंडों के आधार पर बनाए गए थे। इसके बावजूद आपत्तियों की बाढ़ क्यों आई – इस सवाल पर जब तहकीकात की गई, तो चौंकाने वाले जवाब सामने आए।

80 प्रतिशत आपत्तियों की असली वजह: आपसी मनमुटाव और व्यक्तिगत विवाद

लगभग अस्सी प्रतिशत आपत्तियां व्यक्तिगत मतभेद, गांव के आपसी झगड़े, जमीन विवाद, पूर्व की पंच-पंचायती की दुश्मनी और ‘मूंछ का सवाल’ जैसे कारणों से दर्ज की गई हैं।

दरअसल, कई लोग केवल इस वजह से आपत्ति दर्ज करवा रहे हैं कि पंचायत का प्रस्ताव किसी प्रतिद्वंदी ने दिया है। चाहे वह प्रस्ताव सभी मानकों पर खरा क्यों न उतरता हो, लेकिन विरोध केवल इसलिए किया जा रहा है कि “हमें क्यों नहीं पूछा गया” या “वह कौन होता है प्रस्ताव देने वाला”।

10 प्रतिशत आपत्तियां: दूरी और राजस्व गांव का फेर

केवल दस प्रतिशत आपत्तियां वास्तविक भौगोलिक या प्रशासनिक कारणों से जुड़ी हुई हैं।कहीं राजस्व गांव की दूरी अधिक है, तो कहीं आबादी कम होने के चलते कुछ गांवों को पास की पंचायतों में जोड़ दिया गया है। कुछ स्थानों पर लोग इस आशंका से आपत्ति जता रहे हैं कि यदि गांव दूसरी पंचायत में चला गया, तो सरपंच बनने की संभावनाएं कम हो जाएंगी।

बाकी 10 प्रतिशत आपत्तियां: नामकरण और जातिगत समीकरणों से असहमति शेष दस प्रतिशत आपत्तियों में मुख्य रूप से जातिगत समीकरणों और पंचायत के नाम को लेकर असहमति है। कुछ स्थानों पर जातीय संतुलन बिगड़ने की आशंका जताई गई है, तो कुछ लोग पंचायत के नाम को बदलने की मांग कर रहे हैं – चाहे पंचायत बने या नहीं।

प्रशासन की स्थिति स्पष्ट: प्रस्ताव मापदंडों के अनुरूप

प्रशासनिक अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों का कहना है कि प्रस्ताव लंबे मंथन और तय मापदंडों के अनुसार बनाए गए हैं। ऐसे में अब प्रस्तावों में संशोधन की गुंजाइश नाम मात्र ही है।

पंचायत पुनर्गठन की प्रक्रिया को लेकर जितनी आपत्तियां सामने आ रही हैं,उनमें से अधिकांश आपसी मनमुटाव और निजी स्वार्थ से प्रेरित हैं। अब देखना यह होगा कि प्रशासन इन आपत्तियों को किस तरह से सुलझाता है और अंतिम रूप से कितनी पंचायतें पुनर्गठित होती हैं।