पाकिस्तान से आए हिंदू परिवार बोले - वापस जाना मजबूरी, पहलगाम आतंकी हमले के बाद अटारी बॉर्डर बंद

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल 2025 को हुए आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम उठाते हुए अटारी-वाघा बॉर्डर को तत्काल प्रभाव से बंद करने का ऐलान किया। इस फैसले का सबसे बड़ा असर राजस्थान, खासकर जोधपुर और बाड़मेर में रह रहे पाकिस्तानी हिंदू विस्थापित परिवारों पर पड़ रहा है।

पाकिस्तान से आए हिंदू परिवार बोले - वापस जाना मजबूरी, पहलगाम आतंकी हमले के बाद अटारी बॉर्डर बंद

रिपोर्ट जसवंत सिंह शिवकर - जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल 2025 को हुए आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम उठाते हुए अटारी-वाघा बॉर्डर को तत्काल प्रभाव से बंद करने का ऐलान किया। इस फैसले का सबसे बड़ा असर राजस्थान, खासकर जोधपुर और बाड़मेर में रह रहे पाकिस्तानी हिंदू विस्थापित परिवारों पर पड़ रहा है। धार्मिक वीजा पर भारत आए इन परिवारों को अब समय से पहले वापस लौटना पड़ रहा है, जिससे उनके सपने और उम्मीदें अधूरी रह गई हैं। भास्कर की टीम ने जोधपुर में इन परिवारों से बात की और उनकी व्यथा को जाना। 

सदौरी का परिवार: जोधपुर में टूटी उम्मीदें

55 वर्षीय सदौरी, पाकिस्तान के सांगड़ की रहने वाली हैं, जो बाड़मेर सीमा के करीब है। उनके 13 सदस्यों का परिवार 27 मार्च 2025 को धार्मिक वीजा पर जोधपुर आया था। सदौरी ने बताया कि उनकी योजना थी कि जोधपुर में कुछ दिन ठहरकर बाकी परिवार के सदस्यों के वीजा का इंतजार करेंगे। लेकिन पहलगाम हमले के बाद बढ़े तनाव और अटारी बॉर्डर बंद होने की घोषणा ने उनकी योजनाओं पर पानी फेर दिया। अब परिवार को जल्द से जल्द पाकिस्तान लौटना पड़ रहा है।

सदौरी का कहना है, "हम भारत में ही रहना चाहते थे। हमारा मूल स्थान जैसलमेर है। मेरे पिता बंटवारे के समय पाकिस्तान में रह गए थे, तभी से हम वहां हैं। लेकिन मेरे बेटे की बहू का निधन हो गया, और पोता-पोती छोटे हैं। मजबूरी में हमें वापस जाना पड़ रहा है।" सदौरी का परिवार गंगाणा की महादेव भील बस्ती में अपनी बहन के घर ठहरा है।

इसर की पीड़ा: बालेसर से सांगड़ तक का दर्द

सदौरी के 40 वर्षीय बेटे इसर ने बताया कि उनका वीजा 25 अप्रैल 2025 तक वैध है। वे अपनी मां, पत्नी और पांच बच्चों के साथ जोधपुर आए थे। इसर ने कहा, "पाकिस्तान के सांगड़ में मेरा छोटा भाई और बेटे की बहू रह गए हैं। अगर हम अब नहीं लौटे, तो परिवार से हमेशा के लिए बिछड़ने का डर है।" इसर के अनुसार, उनका इतिहास जोधपुर के बालेसर से जुड़ा है, जहां उनकी वंशावली और पुश्तैनी जमीन है। उनके दादा बंटवारे के बाद सांगड़ में रह गए थे, जहां वे खेती-बाड़ी करते थे। इसर ने कहा, "पाकिस्तान के हालात देखकर हम भारत में बसना चाहते थे, लेकिन अब मजबूरी है।"

बच्चों का मन: भारत में रहने की चाहत

इसर की पत्नी भागी ने बताया कि उनके बच्चे मनीष, अमेश, दिव्या, चंपा और विराम भारत में ही रहना चाहते हैं। भागी ने कहा, "हमारा बड़ा बेटा मनीष अपनी पत्नी के बिना अधूरा है। अगर उसका वीजा मिल जाता, तो हम कभी पाकिस्तान नहीं लौटते। लेकिन मौजूदा हालात में हमें जल्द लौटना होगा।" बच्चों को भारत की संस्कृति और आजादी पसंद है, लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियां उन्हें वापस खींच रही हैं।

मेवाराम की बात: बॉर्डर बंदी का समर्थन, लेकिन चिंता

पाकिस्तानी हिंदू विस्थापित मेवाराम ने पहलगाम हमले की निंदा करते हुए कहा, "बॉर्डर बंद करना सही कदम है, लेकिन इससे हमारे परिवारों पर असर पड़ रहा है। मेरी मौसी का परिवार भी धार्मिक वीजा पर आया था, लेकिन गुरुवार को ही वापस लौट गया।" मेवाराम 2015 में अपने परिवार के साथ भारत आए थे और अब महादेव भील बस्ती में रहते हैं। उन्होंने बताया कि उनका बचपन पाकिस्तान में बीता, जहां उन्होंने सातवीं कक्षा तक पढ़ाई की। मेवाराम ने कहा, "पाकिस्तान में मेरी बहन और मामा का परिवार रहता है, लेकिन मैं कभी वापस नहीं गया। भारत ही मेरा घर है।"

अटारी बॉर्डर बंदी का व्यापक असर

भारत सरकार ने पहलगाम हमले के बाद कई कड़े फैसले लिए, जिनमें अटारी-वाघा बॉर्डर बंद करना, सिंधु जल समझौता स्थगित करना, और पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द करना शामिल है। सभी पाकिस्तानी नागरिकों को 27 अप्रैल 2025 तक भारत छोड़ने का आदेश दिया गया है, जबकि मेडिकल वीजा 29 अप्रैल 2025 तक वैध रहेंगे। हालांकि, विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि लॉन्ग टर्म वीजा पर रह रहे पाकिस्तानी हिंदुओं को भारत छोड़ने की जरूरत नहीं है।