जोधपुर में दशहरे के दिन क्यों किया जाता है 5 पुतलों का दहन
राजस्थान के जोधपुर में दशहरे के दिन पांच पुतलों का दहन एक विशेष परंपरा है। इस अनोखी परंपरा के पीछे कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। कहा जाता है कि रावण का ससुराल जोधपुर के मंडोर में था। मंदोदरी, जो रावण की पत्नी थीं, एक अप्सरा की बेटी थीं
जोधपुर / राजेन्द्रसिंह : राजस्थान के जोधपुर में दशहरे के दिन पांच पुतलों का दहन एक विशेष परंपरा है। इस अनोखी परंपरा के पीछे कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। कहा जाता है कि रावण का ससुराल जोधपुर के मंडोर में था। मंदोदरी, जो रावण की पत्नी थीं, एक अप्सरा की बेटी थीं, जिससे रावण मोहित हो गया था और बारात लेकर आया था। इसी कारण से जोधपुर में रावण, मेघनाथ, कुंभकर्ण, सूर्पनखा, और कुंभिनी के पुतले जलाए जाते हैं।
जोधपुर में रावण का मंदिर
जब रावण की बारात जोधपुर आई थी, तब कुछ बाराती वहीं ठहर गए थे। उन बारातियों में से एक समाज रावण की पूजा करता है। पहले रावण की केवल तस्वीर पूजा जाती थी, लेकिन अब वहां एक मंदिर बना दिया गया है। इस मंदिर में रावण और मंदोदरी की प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं, जिनकी भगवान शिव के साथ पूजा की जाती है। मंदिर में रावण और मंदोदरी की प्रतिमा के साथ शिवलिंग भी है और नियमित रूप से पूजा और आरती की जाती हैं।
दशहरे के दिन सारस्वत ब्राह्मण समाज का शोक
जोधपुर में रावण की बारात में आए सारस्वत ब्राह्मण समाज के लोग खुद को रावण के वंशज मानते हैं। दशहरे के दिन ये लोग शोक मनाते हैं और शाम को पुतलों के दहन के बाद स्नान करके भोजन करते हैं। इसके बाद मंदिर में रावण की पूजा और आरती की जाती है। यह परंपरा दशकों से चली आ रही है और आज भी यह समाज अपनी इस मान्यता को निभाता आ रहा है।
मंदोदरी का परिचय
मंदोदरी, जो रावण की पत्नी थीं, एक अप्सरा हेमा की बेटी थीं। उनके पिता राक्षस राजा मायासुर थे। मायासुर ने अप्सरा हेमा को खुश करने के लिए जोधपुर में मंडोर शहर को बसाया था। मंदोदरी अप्सरा की बेटी होने के कारण अत्यंत सुंदर थीं और उनके लिए एक बुद्धिमान वर की आवश्यकता थी। इसी कारण से रावण ने मंदोदरी से शादी की थी।
सांस्कृतिक महत्व
यह परंपरा जोधपुर की सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। दशहरे के दिन पांच पुतलों का दहन एक प्रतीकात्मक अर्थ रखता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाता है। जोधपुर में मनाए जाने वाले इस अनोखे दशहरे का महत्व न केवल स्थानीय लोगों के लिए बल्कि बाहरी लोगों के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। यह परंपरा जोधपुर की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को भी दर्शाती है।