राजधानी जयपुर में रहने वाले कुछ परिवारों की यह हकीक़त जान आप भी हो जाएंगे हैरान
शाम के समय सूरज अपने अस्त होने की और ही था तब राजस्थान यूनिवर्सिटी के एक वकालत करते वाले छात्र का हमारे पास कॉल आया,बोला, सर हम RU के छात्र हैं और जयपुर के जवाहर नगर कची बस्ती में टीला नंबर सात की एक घर से बात कर रहे हैं, हम यहां बस्ती के बच्चो को पढ़ाते हैं, कृपया आप यहां आइए और यहां पर बच्चों के जो हालात हैं वो सरकार के सामने रखने में मदद कीजिए।

जयपुर/राजेन्द्र सिंह : शाम के समय सूरज अपने अस्त होने की और ही था तब राजस्थान यूनिवर्सिटी के एक वकालत करते वाले छात्र का हमारे पास कॉल आया,बोला, सर हम RU के छात्र हैं और जयपुर के जवाहर नगर कची बस्ती में टीला नंबर सात की एक घर से बात कर रहे हैं, हम यहां बस्ती के बच्चो को पढ़ाते हैं, कृपया आप यहां आइए और यहां पर बच्चों के जो हालात हैं वो सरकार के सामने रखने में मदद कीजिए।
करीब शाम के 6 बजे "द खटक" की टीम से मैं राजेन्द्र और सहयोगी ममता हम जवाहर नगर की कच्ची बस्ती के टीला नंबर 7 के आगे पहुंचे लेकिन हमें वो घर नहीं मिल रहा था जिसमें राजस्थान यूनिवर्सिटी के कुछ छात्र बच्चों को पढ़ा रहे थे। और फिर रास्ता पूछते पूछते तंग गलियों और संकरें रास्तों से हम उस घर तक पहुंचे जिसमें चार परिवार के लोग एक ही छत के नीचे रहते हैं और इसी घर की छत के ऊपर उस बस्ती के 20-30 बच्चे शाम को पढ़ने आते हैं। वहां पर हमारी बातचीत छात्र धर्मेंद्र, पूजा, दिनेश से होती हैं जो कि राजस्थान यूनिवर्सिटी की आनंदम पहल के तहत वहां पर निशुल्क पढाई करवाते हैं। बातचीत में चौंकाने वाली बात पता चलती हैं कि इस बस्ती के कई सारे बच्चे ऐसे हैं जिनके अभी तक कोई डॉक्यूमेंट्स नहीं बने हैं और यहां तक कि जन्म प्रमाण पत्र भी नहीं हैं और स्कूल भी नहीं जा पाते हैं।
जब बच्चों से पूछा गया आधार कार्ड नहीं होने का कारण:
हमारे द्वारा बच्चों से आधार कार्ड नहीं होने का कारण पूछा गया तो कई बच्चों ने बताया कि हमारे मम्मी पापा सुबह जल्दी काम पर निकल जाते हैं और समय ही नहीं मिल पाता हैं। यानि कि बच्चों के माता पिता ही जागरूक नहीं हैं बच्चों के डॉक्यूमेंट्स बनवाने में और इनको स्कूल भेजने में। गौर करने वाली बात यहां पर यह हैं कि एक बच्ची की उम्र 12 साल हो गई हैं लेकिन उसका अभी तक ना आधार कार्ड है और ना हीं कोई और कागजात हैं।
जब बच्चों से स्कूल न जाने का कारण पूछा तो बच्चो ने बताया:
जब हमारे द्वारा वहां पर बच्चों से स्कूल न जाने का कारण पूछा गया तो उसमें से दो सगे भाइयों ने जो कारण बताया वह हैरान कर देने वाला था बड़े भाई ने कहा कि मम्मी और पापा दोनों ही चाट का ठेला लगाते हैं , वह सुबह ही ले पर चले जाते हैं और शाम को इतना देर से आते हैं कि घर का खाना भी हम दोनों भाइयों को बनाना पड़ता हैं जिनकी उम्र बड़े भाई की 13 साल और छोटे भाई की 8 साल हैं।
अब इससे यह पता चलता है कि राजधानी जयपुर के सिटी की बस्तियों में ऐसे कई बच्चे होंगे जो जयपुर जैसी बड़ी सिटी में रहते हुए भी शिक्षा से कोसों दूर हैं और यहां तक कि उनके कई डॉक्यूमेंट तक भी नहीं बने हुए यह वह बच्चे हैं जिनके माता-पिता ठेला लगाकर घर का गुजारा चलाते हैं और शाम को देर रात तक वही काम करते हैं । बच्चे पीछे घर में अकेले ही रहते हैं तब वह बच्चे ना ही स्कूल जा पाते हैं और ना ही उनका कोई डॉक्यूमेंट को लेकर काम हो पाता हैं।
अब विचारणीय बात यह हैं कि ऐसे कितने छात्र होंगे जो राजधानी में रहकर भी शिक्षा से वंचित है और इनको शिक्षा से जोड़ने का काम उनके माता पिता के साथ सरकार के उन नेताओं का हैं जो चुनावो के समय जनता से कई बड़े बड़े वादे करते हैं लेकिन उन पर कभी खरा नहीं उतरते।
यह तो जवाहर नगर के एक टीले का पहला खुलासा हैं ,लेकिन जब ऐसी झुगी झोपड़ियां के अंतिम छोर तक जाएंगे तब ऐसे कई खुलासे देखने को मिलेंगे।